Tuesday, April 27, 2021

श्रीरमाम्बिकानमनम्।

 

श्रीरमाम्बिकानमनम्।

© चन्द्रहासः।

श्रीलक्ष्मीं भगवच्छक्तिं वन्दे सागरकन्यकाम्।
पद्माक्षीं हरिपद्मस्थां वन्देऽहं सततं रमाम्॥1

 

 

अम्बिके ते प्रतीक्षायां चातकैव स्थितोस्म्यहम्।
करूणामूर्तये तुभ्यं नमो विश्वस्य नायिके॥2

 

 

त्वं कल्याणी भगं दात्री मंगलकारिणी रमे।
प्रार्थये वैष्णवीं देवीम् अपराधं क्षमस्व मे॥3

 

 

नैव त्वं पूजिता देवि मदीयाज्ञानकारणात्।
समुपकरणीयोऽहं कृत्वा क्षमाऽम्बिके त्वया॥4

 

 

धनं मेऽस्तु सुवर्णं च त्वत् प्रसादस्वरूपिणम्।
श्रीलक्ष्मि भगवद्भार्ये भूमिरप्यस्तु मे तथा॥5

 

 

त्वत्कृपया धनं धान्यं कल्याणं प्रगतिस्तथा।
समृद्धिर्नो भवेत् वृद्धिर् यथेन्द्रस्य त्वया कृता॥6

 

 

त्वं यशदायिनी देवी त्वमार्तनाशिनी रमे।
स्वस्तिरस्तु च शान्तिश्च संसिद्धिश्च सदाऽस्तु मे॥7

 

 

रमाम्बिके नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं रमाम्बिके।
चन्द्रहासनमस्कारं स्वीकृत्य संनिधिं कुरु॥8  

 

इति चन्द्रहासविरचितं श्रीरमाम्बिकानमनं संपूर्णम्।

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