Tuesday, April 27, 2021

हे माँ नमन स्वीकार करो.... !!!

 

हे माँ नमन स्वीकार करो.... !!!

क्या यह भास है? क्या यह आभास मात्र है?
क्या वह भास है? क्या वह आभास मात्र है?
कितने सरल शब्द है? समाधान कितना कठिन?
प्रश्न मानो कांटे पैदा कर चित्तचिर को चीर रहे है।
यह कंटक कितना पिछा कर सकेंगे आपका?
जब तक शरीर है तबतक? जबतक देहभाव है तब तक?
तों विदेह बन जाओं; राजा जनक के जैसे?
किसने रोका है? कब तक रोकेगा? काल तक?
आकाल तक? बालक से युवा बने, कोई रोक पाया?
युवा से वृद्ध होना कौन रोक सकेगा?
यदि नहि, तो क्यों रूकना? कहां मन शान्त होगा?
मन भीतर से अशांत है। आप बाहर से शान्ति खोज रहे हों।
व्याधि कहां, कहां दवाई! देह बुरा नहि है। न हि मन बुरा है।
देह को हि सबकुछ मान लेना अच्छा नहि है। देहके उपर मन है।
मन के उपर बुद्धि है। इन सभी से उपर शक्ति है।
और वह परब्रह्म से अलग कहां?
माई, आप हि बताओं आप के बारे में। और कौन बता सकत है माई?
और कौन बता सकत है? माई, नहि बताना है, तो मत बताओ।
आपकी जैसी इच्छा। होना तो वहि है, जो आप चाहोगी।
हमारे चाहने, ना चाहने से क्या होता है माई? आप हि जगतका कारण है माई।
आप का सुमीरन हों तो पवित्रता है। आप का सुमीरन न हों, तो अपवित्र है।
न जाने कितनी सांसे लेना एवं छोडना बाकी है? बस् आपको भुले नहि।
तों सब अच्छा है। निर्मल है। सभी समस्याआंेका मूल तो आपका विस्मरण है।
तथा आपका सुमीरण सभी समस्याआंेका समाधान है।
इतना जानकर भी कोई आपको भुलता है, तो भूल किसकी? भुलनेवालेकी? अथवा भुलानेवाले की? आप क्यों परीक्षा लेकर, धीरे धीरे बुलाती है?
सभी है तो आपके हि। फिर पहलेसें क्यों नहि बुलाती हों?
आपको स्मरना, आपका विस्मरण तथा आपका स्मरण यहि तों जीवन नहि है?
यदि ऐसा है, तो मै जीवन समझ गयां। यदि ऐसा नहि है, तो मै जीवनको समझना हि नहि चाहतां।
आगे आपकी इच्छा। यदिच्छसि तथा करोसि एव। जैसी इच्छा उसी तरह तो करती हि हों। फिर क्या मांगना? फिर भी मांगता हुं। क्योंकी इक तु हि दातार है। माई, देना अथवा ना देना आपका अधिकार है। पर मांगना तो मेरा काम है।
बेटा मां से हि तो मांग सकता है। और किसीको क्या मांगना? क्यों मांगना?
आपके सिवां कोई कुछ दे भी, तो कितने दिन टिकेगा? आप दे तो, न क्षीण होगा; न जीर्ण। तो आपसे मांगनेमें सरलताभी है तथा बुद्धिमानताभी है।
लख लख प्रणाम माई तेरे चरणोंमें।

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