श्रीमहाकालीस्तवनम्।
© चन्द्रहासः।
शत्रुनाशिनि वन्दे त्वां
रिपुदाहिनि मातृके।
रक्ष मां रक्ष मां देवि खड्गंधरे नमोस्तुते ॥1॥
हे शत्रुनाशिनी, रिपुदाहिनी, माते, आपको मै वंदन करता हूँ। हे खड्गधरे देवि, आपको नमस्कार हैं, मेरी रक्षा करो, मेरी रक्षा करो.
आर्त्तं नाशय मे मेघे
शूरते वीरते शिवे।
भक्तहिताय सिद्धे च सुप्रसिद्धे नमोस्तुते॥2॥
हे मेघे, शूरते विरते, शिवे, मेरा आर्त नष्ट करो। भक्त के हित के लिए सिद्धे , तथा प्रसिद्धे आपको नमस्कार हैं।
मुण्डधरे महाकालि
मन्मातृके पयोनिधि।
तजोनिध्यभयं दात्री कालरात्रि नमोस्तुते॥3॥
हे मुंडधारी, महाकाली, वात्सल्यनिधि, मेरी माँ, तेजोनिधि, अभय देनेवाली, कालरात्रि, आपको नमस्कार हैं।
घनान्धतमसं चौर्यं शत्रोः
क्रौर्यं च नाशके।
मारयित्वा रिपुत्वं च कार्यं भक्तप्रियं कुरु॥4॥
गहन अंध:कार का, चौर्य का, शत्रु के क्रौर्य का नाश करनेवाली माते, शत्रुत्व को मार भक्तप्रिय कार्य करो।
हे मातस्त्वद्विना नैव
कस्यापीह समर्थता।
हत्वा शत्रुं सुकार्यं च कर्तुं भक्तस्य सुप्रियम्॥5॥
हे माते, शत्रुनाश कर भक्त का सुप्रिय कार्य
करने हेतु आपके बिना किसीकीभी समर्थता नहीं है।
हितं भक्तस्य कर्तुं त्वं
कल्याणि यशदे करे।
संधारय तवेदानीं चन्द्रहासं समुज्ज्वलम् ॥6॥
भक्त का हित करने हेतु हे कल्याणि, यशदे, आप आपके हाथ में अभी
कांतिमयी चन्द्रहास धारण करे।
प्रयोज्यं तत् त्वया
हन्तुं भक्तरिपुं महारिपुम्।
तेजस्विनि महादेविसतिश्रीरेणुकेऽम्बिके॥7॥
भक्तरिपु, महारिपुनाश हेतु हे तेजस्विनि, महादेवि, सतिश्रीरेणुके, माते, प्रयुक्त हों।
शत्रुमर्दिनि नौमि त्वां
वन्दे चासत्यनाशिनि।
कुरु मे मंगलं मातः नमोस्तुते नमोस्तुते॥8॥
हे शत्रुमर्दिनि, आपकी स्तुति करता हूँ। हे असत्यनाशिनि, आपको वंदन करता हूँ। हे माते, मंगल करो, आपको नमस्कार हैं। आपको नमस्कार हैं।
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